2316 करोड़ का चंदा! न उम्मीदवार जीता, न वोट मिले, फिर भी मालामाल

Saima Siddiqui
Saima Siddiqui

देश में जब चुनावी घमासान चलता है, तो आमतौर पर सुर्खियों में BJP, कांग्रेस, AAP जैसे बड़े नाम रहते हैं। लेकिन पीछे से चुपचाप गेर मान्यता प्राप्त पार्टियां भी चंदे की खिचड़ी पका रही हैं — और वो भी बिना किसी राजनीतिक उपलब्धि के!

ADR (Association for Democratic Reforms) की रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात की 5 ऐसी पार्टियों को पिछले 5 साल में 2316 करोड़ रुपये का चंदा मिला।
और बदले में… 17 उम्मीदवार, 22,000 वोट, 0 जीत
इसे कहते हैं — ROI का नया फार्मूला: Result Zero, Income Infinite!

क्या होती हैं पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त पार्टियां?

अगर आप सोच रहे हैं कि ये पार्टियां कौन सी हैं जिनका नाम आपने कभी सुना तक नहीं — तो सुनिए:

  • इन्हें आरक्षित चुनाव चिह्न नहीं मिलता

  • TV/रेडियो पर फ्री प्रमोशन नहीं

  • रियायती ज़मीन नहीं

  • फॉरेन फंडिंग नहीं

  • और सबसे मज़ेदार — इनमें से 73.26% ने अपने फाइनेंशियल रिकॉर्ड भी पब्लिक नहीं किए!

यानी, नाम नहीं, पहचान नहीं, लेकिन चंदे में सबसे आगे!

गुजरात: वोट भले न हों, मगर चंदा तो बोलता है!

गुजरात में ऐसी 95 पार्टियां पंजीकृत हैं।
इनमें से 59 ने आज तक कोई फाइनेंशियल डिटेल नहीं दी, लेकिन जब बात “डोनेशन जमा” की आती है — तो न कोई “गुप्त दान” से पीछे हटता है, न कोई रकम छोटी होती है।

सवाल ये नहीं कि पैसा आया कहां से… सवाल ये है कि इतने पैसे से अगर चुनाव हारना है — तो लड़ना ही क्यों?

चंदे की गणित: वोट नहीं, व्यूज़ भी नहीं — फिर भी करोड़ों?

इन पार्टियों ने पिछले 5 सालों में…

  • सिर्फ 17 कैंडिडेट मैदान में उतारे

  • कुल 22,000 वोट मिले (मतलब एक अच्छे इंस्टाग्राम रील से भी कम इंप्रेशन)

  • 2316 करोड़ का चंदा लिया (वो भी टैक्स छूट के साथ)

मानो किसी ने कहा हो — “पॉलिटिक्स में पॉपुलर होने की ज़रूरत नहीं, बस रजिस्टर्ड हो जाओ और खाता खोल लो!”

फंडिंग का कानून: धारा 29बी का कमाल

गैर मान्यता प्राप्त पार्टियां भारत के जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29B के अंतर्गत कंपनियों और व्यक्तियों से चंदा ले सकती हैं।
फॉरेन फंडिंग पर रोक है, लेकिन घरेलू “भक्त और भक्तिनें” तो हैं ही।

सवाल उठता है — ये चंदा “डेमोक्रेसी” को चला रहा है या सिर्फ बही-खाता भर रहा है?

और कौन-कौन है लिस्ट में?

  • उत्तर प्रदेश: सबसे ज़्यादा पार्टियों ने अपने फाइनेंशियल रिकॉर्ड दिए

  • दिल्ली और बिहार: दूसरे और तीसरे नंबर पर

  • तमिलनाडु, दिल्ली और UP: वहीं, जिन राज्यों में पारदर्शिता नदारद है

ये डेटा देखकर लगता है — पारदर्शिता हो या पाखंड, सब कुछ राज्यवार मिलता है!

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